पीले पड़ गए हैं प्रेम पत्र
अक्षर उकेरती उँगलियों की
ध्वनियाँ
गुम गयी हैं कहीं स्मृति के
निविड़ में
हथेलियों की ओट में सरसराती उँगलियों
के रास्ते
आँखों के मार्दव का
पन्नों पर
उतरना
चुप –चुप
सांसों की उसांसों में .....उतरते हुए महसूस करना
शब्दों की गरमाई
अब याद नहीं कुछ याद के सिवा
बस बची रह गयी है कोई खुशबू
कोई महसूस
कोई नामालूम
ऊष्मा
पन्नों पर सरकती उँगलियों की
सांकेतिक ध्वनियाँ
आँखों में
अनभूला छूटा हुआ
रहस्यमय किसी अर्द्धस्वप्न -सा
क्या है जो फिर भी बचा रह गया है
आज भी .
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