जब
स्त्री प्रसन्न होती है
सूर्य में आ जाता है ताप
धान की बालियों में
भर जाता है दूध
नदियाँ उद्वेग में भरकर
दौड़ पड़ती हैं
समुद्र की और
खिल जाते हैं फूल
सुगंध से भर उठती है हवा
परिंदे चहचहाते हैं
तितलियाँ उड़ती हैं
आकाश में उगता है चाँद
चमकते हैं तारे ..जुगनू
खिलखिलाती है चाँदनी
आँखों में भर जाती है उजास
पुरुष बेचैन हो जाते हैं
बच्चे निर्भय |
स्त्री प्रसन्न होती है
सूर्य में आ जाता है ताप
धान की बालियों में
भर जाता है दूध
नदियाँ उद्वेग में भरकर
दौड़ पड़ती हैं
समुद्र की और
खिल जाते हैं फूल
सुगंध से भर उठती है हवा
परिंदे चहचहाते हैं
तितलियाँ उड़ती हैं
आकाश में उगता है चाँद
चमकते हैं तारे ..जुगनू
खिलखिलाती है चाँदनी
आँखों में भर जाती है उजास
पुरुष बेचैन हो जाते हैं
बच्चे निर्भय |
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