Wednesday 17 August 2011

मेरी दाई

मेरी दाई का मरद
अक्सर भाग जाता है 
चार बच्चों के साथ अकेला छोड़कर उसे 
इस दावे के साथ 
कि औरत तो मिल जाती है कहीं भी 
और जब चाहे लौटकर 
लेट जाता है उसके पास 
इस अधिकार से
 कि पति है 
दाई रोती  है ..कलपती है
फिर भी मांग में 
चटख सिन्दूर भरती है 
करती है सुहाग वाले सारे व्रत 
साँवली-सलोनी ,छरहरी दाई 
घर -घर मांजती है बरतन 
पालती है बच्चों का पेट 
नाक पर बैठने नहीं देती 
मक्खी भी 
ठसक ऐसी कि छोड़ देती है 
धन्ना सेठों का भी काम 
ठीकरा समझती है पैसे को 
आबरू के आगे 
पर नहीं कर पाती लागू 
अपने बनाये नियम 
शराबी ,भगोड़े पति पर 
टोकने पर कहती है "_इ  त औरत के धरम ह  दीदी "
और मैं सोचती हूँ _इतना अलग क्यों है स्त्री का धरम 
पुरूष के धरम से |

1 comment:

  1. is stree dharm ki pribhasha is liye nhi bdl rhi hai kyon ki vo ptni dharm ko jyada upar manti aa rhi hai . jis din vo apni asmita ko phchan legi us din stree dharm ki kopal is smaj rupi bnjjr dharti se foot kr bahr jroor aayegi .
    vaise is tbke ki mhilaye apni ldkiyo ko ab shikshit kr ke koi n koi kors krvane me jyada ruchi le rhi hai taki unhe bhi brtn our jhadu pochhe ka kam n krna pde our ye ek achchhi shuruaat hai .
    aapki kvita smaj ke ek tbke ka drpn hai .

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