उनके पंख नहीं हैं ,पर वे उड़ती हैं
सलीके से बंधे जुड़े और साड़ी में परी सी
उनकी पलके रंगीन हैं
किसी की नीली, किसी की फिरोजी
हरी तो, गुलाबी किसी की
होंठों पर भी खुशनुमा रंग है
चेहरा चमकता है शीशे -सा
जिस्म हवा की तरह हल्का और ताजा
उम्र भी नवीन है ,खुशबू से महकता है
वे बोलती नहीं, कूकती हैं
चलती हैं सधी चाल
सभ्य.. सुंदर .. शालीन
वे दादी -नानी की कहानियों की परियां हैं
ताकते रह जाते हैं बुड़बक कीतरह
जिन्हें पहली बार देख कर लोग
हाथों में ट्रे लिए बाँटती हैं वे
खट्टी -मिट्ठी गोलियाँ और जो भी यात्री चाहे
टाल जाती हैं कामुक दृष्टि ,छुअन व
चाहतों को मुस्कुराकर
आखिर वे परिचारिकाएं ही तो हैं
बड़ा ही नपा -तुला -सधा
संयमित जीवन है उनका
'फीगर' के अनुशासन से
न खा सकती हैं मनचाहा
न हँस सकती हैं
शायद जी भी नहीं सकती
अपनी मर्जी से
कैरियरिस्ट ये परियां
सोचती हूँ -क्या आजाद हैं ये
कि आजाद है
वह घसियारिन चम्पा
बिखरे बालों और सूती साड़ी में औरत -सी
जिसकी पलकें और होंठ सांवले हैं
चेहरे पर पसीने का नमक
भरा -सांवला बदन
आदम गंध से महकता है
जो भर पेट खाती है
चटनी -भात
लिट्टी -चोखा
ठठाकर हँसती है
असभ्य .अनपढ़ ..अशालीन
जमीन पर चलती है अक्सर
नंगे पाँव
पर तान लेती है हँसिया
कामुक दृष्टि छुअन व चाहत पर |
सलीके से बंधे जुड़े और साड़ी में परी सी
उनकी पलके रंगीन हैं
किसी की नीली, किसी की फिरोजी
हरी तो, गुलाबी किसी की
होंठों पर भी खुशनुमा रंग है
चेहरा चमकता है शीशे -सा
जिस्म हवा की तरह हल्का और ताजा
उम्र भी नवीन है ,खुशबू से महकता है
वे बोलती नहीं, कूकती हैं
चलती हैं सधी चाल
सभ्य.. सुंदर .. शालीन
वे दादी -नानी की कहानियों की परियां हैं
ताकते रह जाते हैं बुड़बक कीतरह
जिन्हें पहली बार देख कर लोग
हाथों में ट्रे लिए बाँटती हैं वे
खट्टी -मिट्ठी गोलियाँ और जो भी यात्री चाहे
टाल जाती हैं कामुक दृष्टि ,छुअन व
चाहतों को मुस्कुराकर
आखिर वे परिचारिकाएं ही तो हैं
बड़ा ही नपा -तुला -सधा
संयमित जीवन है उनका
'फीगर' के अनुशासन से
न खा सकती हैं मनचाहा
न हँस सकती हैं
शायद जी भी नहीं सकती
अपनी मर्जी से
कैरियरिस्ट ये परियां
सोचती हूँ -क्या आजाद हैं ये
कि आजाद है
वह घसियारिन चम्पा
बिखरे बालों और सूती साड़ी में औरत -सी
जिसकी पलकें और होंठ सांवले हैं
चेहरे पर पसीने का नमक
भरा -सांवला बदन
आदम गंध से महकता है
जो भर पेट खाती है
चटनी -भात
लिट्टी -चोखा
ठठाकर हँसती है
असभ्य .अनपढ़ ..अशालीन
जमीन पर चलती है अक्सर
नंगे पाँव
पर तान लेती है हँसिया
कामुक दृष्टि छुअन व चाहत पर |
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