मैं
बार-बार हारकर भी
हार नहीं मानती
अकेले लड़ती रहती हूँ
एक लम्बी लड़ाई
जिंदगी
और वक्त के
कठोर ..क्रूर पंजों में
तिलमिलाती
छटपटाती
मैं
सोचती रहती हूँ
कभी तो कोई आएगा
चिर प्रतीक्षित
और
मैं
जीत जाऊँगी|
बार-बार हारकर भी
हार नहीं मानती
अकेले लड़ती रहती हूँ
एक लम्बी लड़ाई
जिंदगी
और वक्त के
कठोर ..क्रूर पंजों में
तिलमिलाती
छटपटाती
मैं
सोचती रहती हूँ
कभी तो कोई आएगा
चिर प्रतीक्षित
और
मैं
जीत जाऊँगी|
बढ़िया प्रस्तुति शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे आये आपका में अभिनानद करता हु
दीप उत्सव स्नेह से भर दीजिये
रौशनी सब के लिये कर दीजिये।
भाव बाकी रह न पाये बैर का
भेंट में वो प्रेम आखर दीजिये।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
दिनेश पारीक
संघर्ष और प्रतीक्षा भिन्न दिशायें। संघर्ष में नित नयी उपलब्धियाँ है। प्रतीक्षा में नियति के प्रति मौन समर्पण। समर्पण संघर्ष नहीं हो सकता।
ReplyDeleteप्रतीक्षा एक कठिन साधना है। एक शून्य जो अनन्त है या फिर कुछ भी नहीं।