Monday 5 December 2011

प्रेत

गाँव के बाहर का 
जटाधारी बूढ़ा बरगद
जाने कब से भुतहा कहलाता था 
उसके नीचे प्रेत का 
चढावा चढ़ता था 
शाम ढले के बाद 
कोई उधर नहीं गुजरता था 
उसी बरगद के पीछे 
टूटे-फूटे खंडहर में 
छिपकर रहता था वह 
लोगों द्वारा 
प्रेत को चढ़ाये गए 
चढ़ावों से 
चलता था उसका काम 
एक दिन रंगे-हाथों
पकड़ लिया गया 
और पीट-पीटकर
मार डाला गया 
अब वह भी प्रेत है 
लोग उससे भी 
भय खाने लगे हैं
उसके नाम चढ़ावा
चढाने लगे हैं | 

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