चाहती हूँ मैं
छतनार वृक्ष होना
थके राही विश्राम पायें
जिसकी छाँह में
गिलहरियां दौड़े
जिसके मोटे तनों पर
पक्षी घोंसले बनायें
सूखी डालियाँ,पीले पत्ते
गरीबों का ईंधन बनें
जड़ें अन्वेषण करें
दूर तक जाकर भोजन की
गहरे पैठें धरती में
मीठे पानी की तलाश में
पर कमरे में हरियाली कैद करने की
तुम्हारी लालसा ने
बनाया मुझे बोनसाई
गमले-भर मिट्टी
अंजुरी-भर खाद
चुल्लू-भर पानी
विस्तार की सारी आकांक्षाएं
इन्हीं सीमाओं में
कैद कर दी गईं
कमरे के बाहर का आकाश
हवा,धूप,बारिश
झूमते सजातीय बन्धु
सब पराये कर दिए गए
जब भी मैंने बाहें फैलानी चाहीं
कस दिया तुमने
धातु के तार में
कैंची चलाई
मेरी पीड़ा सुने वगैर
पक्षी नहीं आते घोंसला बनाने
मेरी बाहें सूनी रह जाती हैं
तुम्हारे ड्राइंगरूम की
शोभा बनी मैं बोनसाई
तुम्हारे इच्छाओं की दासी |
छतनार वृक्ष होना
थके राही विश्राम पायें
जिसकी छाँह में
गिलहरियां दौड़े
जिसके मोटे तनों पर
पक्षी घोंसले बनायें
सूखी डालियाँ,पीले पत्ते
गरीबों का ईंधन बनें
जड़ें अन्वेषण करें
दूर तक जाकर भोजन की
गहरे पैठें धरती में
मीठे पानी की तलाश में
पर कमरे में हरियाली कैद करने की
तुम्हारी लालसा ने
बनाया मुझे बोनसाई
गमले-भर मिट्टी
अंजुरी-भर खाद
चुल्लू-भर पानी
विस्तार की सारी आकांक्षाएं
इन्हीं सीमाओं में
कैद कर दी गईं
कमरे के बाहर का आकाश
हवा,धूप,बारिश
झूमते सजातीय बन्धु
सब पराये कर दिए गए
जब भी मैंने बाहें फैलानी चाहीं
कस दिया तुमने
धातु के तार में
कैंची चलाई
मेरी पीड़ा सुने वगैर
पक्षी नहीं आते घोंसला बनाने
मेरी बाहें सूनी रह जाती हैं
तुम्हारे ड्राइंगरूम की
शोभा बनी मैं बोनसाई
तुम्हारे इच्छाओं की दासी |
एक बहुत अच्छी कविता। बधाई !
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