चलो होरी
एक बार फिर अपने गाँव
जहाँ नदी के किनारे
छुप-छुप मिला करते थे हम
वहीं पर तो पहनाई थी तुमने
पहली बार मेरे पैरों में
घुघुचियों की पायल
बीच नदी से तोड़कर
ले आए थे लाल कमल
याद है हरे-भरे खेतों की मेड़ पर
डगमगाती-गिरती मुझे
देते थे तुम अपनी मजबूत
बाहों का सहारा
चने-मटर की फुनगियाँ खोंटते
अक्सर टकरा जाते थे हमारे सिर
जिसे झगड़े के डर से
फिर लड़ाना पड़ता था
मुँह-अँधेरे महुआ के बागान जाना तो
जरूर याद होगा तुम्हें
कैसे धरती पर मोतियों से बिखरे
रहते थे महुए के फल
जिन्हें चुन-चुन कर भर देते थे तुम
पहले मेरा ही खोईछा
महुआ की मीठी पूड़ी- हलवा
और चने की पिट्ठी से भरी
अहरे पर सीझी
सुडौल-चित्तीदार
लिट्टियों का स्वाद आज भी ताजा है
चलो ना होरी
इस बार अपने गाँव
देखे तो चलकर कितना बचा हुआ है
अपने गाँव में पुराना गाँव |
एक बार फिर अपने गाँव
जहाँ नदी के किनारे
छुप-छुप मिला करते थे हम
वहीं पर तो पहनाई थी तुमने
पहली बार मेरे पैरों में
घुघुचियों की पायल
बीच नदी से तोड़कर
ले आए थे लाल कमल
याद है हरे-भरे खेतों की मेड़ पर
डगमगाती-गिरती मुझे
देते थे तुम अपनी मजबूत
बाहों का सहारा
चने-मटर की फुनगियाँ खोंटते
अक्सर टकरा जाते थे हमारे सिर
जिसे झगड़े के डर से
फिर लड़ाना पड़ता था
मुँह-अँधेरे महुआ के बागान जाना तो
जरूर याद होगा तुम्हें
कैसे धरती पर मोतियों से बिखरे
रहते थे महुए के फल
जिन्हें चुन-चुन कर भर देते थे तुम
पहले मेरा ही खोईछा
महुआ की मीठी पूड़ी- हलवा
और चने की पिट्ठी से भरी
अहरे पर सीझी
सुडौल-चित्तीदार
लिट्टियों का स्वाद आज भी ताजा है
चलो ना होरी
इस बार अपने गाँव
देखे तो चलकर कितना बचा हुआ है
अपने गाँव में पुराना गाँव |
सुंदर.....
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