Friday 2 March 2012

व्यतिक्रम

बसंत के आने के बाद भी
गया नहीं है पतझर
पतझर ही क्यों सेमल पर
दिख रहे हैं कई और मौसम भी
जैसे आदमी में मौजूद रहती हैं
कई अवस्थाएं एक साथ
पेड़ पर गुलाबी..धानी..हरी.. पीली ..काली
हर तरह की पत्तियाँ हैं
अपने पूरे सौंदर्य के साथ
कोंपलें गुलाबी से धानी हो रही हैं
तो धानी हरी
हरी के पीली होने में अभी वक्त है
पीली पत्तियाँ पुरानी हैं
धीरे-धीरे उनका रंग पड़ रहा है स्याह
काली पड़ चुकी पत्तियाँ उदास हैं
हवा के हर स्पर्श से काँप जाती हैं
पेड़ का मोह उन्हें नहीं छोड़ रहा है
पूरी उम्र जी चुकी सूखी पत्तियाँ
 बिखरी पड़ी हैं पेड़ के ही इर्द-गिर्द
यह सीधा क्रम है प्रकृति का
जबकि आदमी
काले से पीला
पीले से हरा
हरे से धानी
धानी से गुलाबी होने को मचल रहा है
प्रकृति के नियमों के विपरीत |

1 comment: