Wednesday 14 March 2012

आँधी


दुखी हैं आम्रवृक्ष
कल शाम की आई आँधी से
शुरू हो गया सिलसिला बौराते ही उनके  
अब जब तक रहेंगे वे फूले-फले
आती रहेगी ईर्ष्यालु आँधी
धरती पर मरणासन्न पड़े
मोजरों पर टपक रहे हैं
आम्र-वृक्षों के विवश आँसू
अभी दोपहर तक ये मोजर
चमक रहे थे जिंदगी की
सुनहरी आभा से
चहक रहे थे पूरे कुनबे के साथ
मह-मह महक रहे थे
हवा सुगंध का निमंत्रण-पत्र
बाँट रही थी गाँव-मोहल्ले
कि हो रही है पेड़ की गोद-भराई
साल-भर बाद आया है यह शुभ अवसर
सब पधारें
बधाई देने पहुँच रहे थे दूर-दूर से
भ्रमर...चींटे ..तरह-तरह के पंक्षी
कोयल गाने लगी थी सोहर
सब-कुछ मंगलमय था
कि आ गयी अचानक यह काली आँधी
यह आँधी कहीं लोककथा की
वह बूढ़ी परी तो नहीं
जिसे भूल से नहीं भेजा जा सका
राजकुमारी के जन्मोत्सव का निमंत्रण
और क्रोध में दे दिया उसने
नन्ही राजकुमारी को
मृत्यु का शाप,जो बदल गया था
बारह वर्ष की चिर-निद्रा में
या फिर वह कलियुगी डॉक्टर है
कन्या-भ्रूणों को मारकर करती है जो
अपनी ही जाति का विनाश
निठुर आँधी क्या जाने
हर मोजर में छिपा है पूरा फल
फल में गुठली
गुठली में सम्पूर्ण पेड़
पेड़ में अनगिनत जीवन |

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