Thursday 22 September 2016

मैं शायर तो नहीं फिर भी...

बढ़ता ही गया था 
रावण का साम्राज्य
फिर भी दुःख रहा उसे
सीता न जीत पाया।

जीवन में हों या जगत में
कविता में या फिर गद्य में
किसी भी पक्ष या विपक्ष में
वे हर क्षेत्र के बड़े उस्ताद हैं।

चिड़िया आखिर कब तक
उड़ती रहे आसमान में
धरती पर ही घोंसला है
जहाँ आराम मिलता है।

चंद लाइनों में मेरी
कविता सिमटकर रह गयी
दोस्तों लड़ाई पेट की
मुझे फुरसत नहीं देती।

खिलना भी एक सच है
मुरझाना भी एक सच
दोस्तों हर हाल में
हँसती हूँ इसीलिए |।


गर सौदा करोगे तो
लाखों में न मिलेगी
वफ़ा तो इस जहाँ में
बस बेमोल बिकती है।

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