Thursday 20 October 2016

मैं शायर तो नहीं फिर भी.....

आज भी लक्ष्मी शारदा पर भारी हैं 
हंस विलुप्त हुए उलूकों की बारी है |
शिकायत तुम्हें है पूरे जमाने से 
जमाने में क्या तुम नहीं आते ?
कहते हो तुम्हें अभिमान नहीं है 
बात न सुनी तो क्यों आग हो गए ?
ईमान कहाँ हँस पाता है ज़ोर ज़ोर से 
बेईमान ही सदा अट्टहास करता है |
डरती रही उम्र भर अकेलेपन से मैं
पर उससे करीबी कोई दोस्त न मिला |

परीक्षा मैं क्यों दूँ तुम परीक्षक नहीं हो 
कभी कोई परीक्षा तुमने भी पास की है |

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