Monday 3 October 2016

मैं शायर तो नहीं फिर भी ...

इश्क की आग भी कैसी अजीब है
लगती कहीं जलती कहीं और हैं।
Top of Form
दिल तक भला दूसरा पहुँचे कैसे
आँखों में किसी ने धरना दे रखा है।
हमने जिसे भी गले लगाया  
उसी ने घोपी पीठ में खंजर
वे बदल न सके अपनी फितरत
बदलना हमें भी कहाँ आया।
हम तो उम्मीद पर मारे गए हमेशा
वे कह रहे हैं एक बार आजमा के देखो।

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