योद्धा थी मेरी माँ
उसने सिर्फ अपनी लड़ाई नहीं लड़ी
लड़ी हम भाई बहनों के साथ ही
बहुतों की भी लड़ाई
हमेशा ढाल की तरह
लड़ी हम भाई बहनों के साथ ही
बहुतों की भी लड़ाई
हमेशा ढाल की तरह
खड़ी हो जाती रही
सबके आगे
जिस पर भी अन्याय हुआ
मानो उसी पर हुआ
करती थी तुरत प्रतिकार
कम पढ़ी-लिखी थी मगर
चाहा शिक्षा का हो प्रसार
अड़ोसी-पड़ोसी हो
या नात-रिश्तेदार
सबके हित के लिए लड़ती थी माँ
बहुत ही प्रगतिशील थे उसके विचार
सादा था जीवन उच्च थे विचार
मेरे पास जो कुछ है
उसी का उच्छिष्ठ है
बचा खुचा अवशिष्ठ है।
सबके आगे
जिस पर भी अन्याय हुआ
मानो उसी पर हुआ
करती थी तुरत प्रतिकार
कम पढ़ी-लिखी थी मगर
चाहा शिक्षा का हो प्रसार
अड़ोसी-पड़ोसी हो
या नात-रिश्तेदार
सबके हित के लिए लड़ती थी माँ
बहुत ही प्रगतिशील थे उसके विचार
सादा था जीवन उच्च थे विचार
मेरे पास जो कुछ है
उसी का उच्छिष्ठ है
बचा खुचा अवशिष्ठ है।
आपकी लिखी रचना, "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 18 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमाँ ताउम्र किसी न किसी रूप में सदा साथ रहती हैं अपने बच्चों के ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना