Sunday, 17 January 2016

योद्धा माँ

योद्धा थी मेरी माँ 
उसने सिर्फ अपनी लड़ाई नहीं लड़ी
लड़ी हम भाई बहनों के साथ ही 
बहुतों की भी लड़ाई
हमेशा ढाल की तरह

खड़ी हो जाती रही 
सबके आगे
जिस पर भी अन्याय हुआ
मानो उसी पर हुआ
करती थी तुरत प्रतिकार
कम पढ़ी-लिखी थी मगर
चाहा शिक्षा का हो प्रसार
अड़ोसी-पड़ोसी हो
या नात-रिश्तेदार
सबके हित के लिए लड़ती थी माँ
बहुत ही प्रगतिशील थे उके विचार
सादा था जीवन उच्च थे विचार
मेरे पास जो कुछ है 
सी का उच्छिष्ठ है
बचा खुचा अवशिष्ठ है।

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना, "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 18 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. माँ ताउम्र किसी न किसी रूप में सदा साथ रहती हैं अपने बच्चों के ..
    बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना

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