Wednesday 10 June 2020

लकड़बग्घे



वे एक साथ कई थे
किसी समारोह में थे
उनपर फूल बरस रहे थे
पत्रकार उनके इर्द-गिर्द दौड़ रहे थे
पान के रंग से छिप गया था
उनके दांतों में लगा खून
आँखों को मदिरा से लाल
समझ रहे थे लोग
कोट की जेबों में छिपे थे
नुकीले नाखूनों वाले उनके हाथ
वे सभी एक-दूसरे का रहस्य जानते थे
कि किसने कितना और कब-कब किया है
कमजोरों का शिकार
वे सभ्य दिख रहे थे
उनके चेहरे पर लालिमा थी
चाल में पद और कद की गरिमा थी
वे ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे थे
उन्हें देख कर मुझे लगा
सच ही कहा था कवि ने
लकड़बग्घे ही हँस सकते हैं |

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