Saturday 20 August 2011

मेरे गांव में आज भी


मेरे गांव में आज भी 
डूबते सूरज की रौशनी में
रंगीन होते वृक्षों को देखकर
लौट आती हैं गायें
अपने बथानों की तरफ |
बारिश में
तितलियों की तरह
नहाते हैं बच्चे |
पहली बार ससुराल से लौटी
नाईन की मदमाती बेटी –सी हवा
बांटती है छम –छम करती
घर –घर में बायना |
बालाओं की आँखों में
कुलांचें भरते हैं हिरन
बूढ़ी सधवाओं की सुर्ख टिकुली से
शरमा जाता है चाँद
नववधुओं के चेहरे की दीप्ति से
फीकी पड़ जाती है बिजली
बाबा की लाठी की फटकार से
मुँहअँधेरे ही भाग खड़ा होता है आलस
और नाराज होकर घर से निकली दादी
चूजों को दाना खिलाती
मुर्गी को देखकर
लौट आती है घर
खोइछे में
मूढ़ी और बताशे लेकर |

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