मेरे गांव में आज भी
डूबते सूरज की रौशनी में
रंगीन होते वृक्षों को देखकर
लौट आती हैं गायें
अपने बथानों की तरफ |
बारिश में
तितलियों की तरह
नहाते हैं बच्चे |
पहली बार ससुराल से लौटी
नाईन की मदमाती बेटी –सी हवा
बांटती है छम –छम करती
घर –घर में बायना |
बालाओं की आँखों में
कुलांचें भरते हैं हिरन
बूढ़ी सधवाओं की सुर्ख टिकुली से
शरमा जाता है चाँद
नववधुओं के चेहरे की दीप्ति से
फीकी पड़ जाती है बिजली
बाबा की लाठी की फटकार से
मुँहअँधेरे ही भाग खड़ा होता है आलस
और नाराज होकर घर से निकली दादी
चूजों को दाना खिलाती
मुर्गी को देखकर
लौट आती है घर
खोइछे में
मूढ़ी और बताशे लेकर |
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