Monday 16 February 2015

गुमान


सेमल के पत्तों को जब हो जाता है गुमान 
कि वे सेमल का तन ढंकते हैं 
बढाते हैं उसका सौंदर्य 
सुरक्षित रखते हैं शिशिर आतप और बारिश से 
उनसे ही है उसका अस्तित्व 
वे छोड़कर सेमल का साथ 
उड़ने लगते हैं हवा के साथ 
भूल जाते हैं वे जन्में थे सेमल से 
उसके ही स्नेह-रस से टहनियों पर जड़ें थे 
सेमल चुपचाप देखता है उन्हें 
जवां हो चुके पत्तों से वह क्या कहे 
वह दुखी होता है कि खो बैठें न वे अपना अस्तित्व 
उसका क्या उसे तो आदत है चुपचाप दुख सहने की 
अकेलेपन का दंश सहने की 
जब साथ छोड़ देते हैं फूल 
साथी पक्षी पास नहीं फटकते 
सूखकर काली पड़ जाती है देह 
वह बस ऊपर देखता है 
प्रार्थना करता है आकाश के देवताओं से 
नहीं करता किसी से शिकायत |



No comments:

Post a Comment