लतरों मे छिपाकर
पालता है
मटर का पौधा
अपनी फलियों को
सिर से पाँव तक
ढँक देता है
मोटे हरे आवरण
में
युवा होते ही
उनके चिंतित होकर
और सावधानी बरतता
है
ताकि न चढ़े किसी
की नजर में
पारखी नजरों से
नहीं छिप पाती
फलियों की
मांसलता
वे तोड़ ले जाते
हैं उन्हें
सारी बाधाओं को
परे धकेलकर
रोता है पौधा
रोती हैं लतरें
हँसती है हरी मटर
आजाद होकर |
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