Sunday 17 January 2016

एक पुरूष का दर्द

मेरी औरत पच्चीस साल पहले भाग गयी थी |
-कै करके नहीं रखा था..?” मैंने चुटकी ली |
रखा था न,परदे में रखता था ,जासूस लगा रखे थे ,मिलने नहीं देता था किसी से ,पैसा नहीं रता था हाथ में,चिट्ठी-पत्री के लिए दे रखा था कोई दूसरा पता...|
-फिर भी भाग गयी ..क्या किसी के साथ..?’
नहीं नहीं ..ऐसी नहीं थी ..किसी के साथ नहीं भागी |
‘-भाग कर कहाँ गयी ?’
अपनी माँ के घर
-वजह क्या बताती थी ?’
बच्चा बीमार था इलाज के लिए गयी ..
-तुमने नहीं कराया था इलाज ..?’
पैसा कहाँ था मेरे पास ?वैसे बीमारी बहाना था उसे भागना ही था |
-क्या करते थे उस वक्त ?
कुछ नहीं
-कितने वर्ष हो गए थे शादी के
पूरे दस साल
-बाल विवाह हुआ था क्या?’
नहीं दसवीं में पढ़ते थे दोनों
-किस उम्र में भागी ?
बीसवें साल में
-कितनी उम्र का था तब बच्चा ?”
पाँच साल का
-क्या किया माँ के घर जाकर उसने ?
पढ़ने लगी
-रोका नहीं
बहुत रोका ..पास-पड़ोस नात-रिश्तेदार सबसे दलवाया दबाव,पर नहीं मानी|
-क्या कहती थी?”
आत्मनिर्भर बनूँगी
-तुम्हारी आपत्ति क्या थी ?
औरत मर्द से ज्यादा पढे ,नौकरी करे यह मुझे पसंद नहीं |
-फिर क्या हुआ?
साम दंड भेद सबका सहारा लिया |नहीं मानी तो बच्चे को उठा लाया ,सोचा लौट आए तो उसकी औकात दिखाऊँ ,बात न मानने का मजा चखाऊँ |
-लौटी..?”
नहीं..सयानी थी ,दे दी ममता की कुर्बानी |कहती थी किसी कीमत पर पढ़ाई नहीं छोडूँगी आत्मनिर्भर होकर ही लौटूँगी|
-पहले कभी मारा-पीटा था?
 खून निकाल लेता था |औरत को लात के नीचे रखना जरूरी होता है |
-फिर भी भाग गयी न!
भागी कहाँ ?मुझसे पूछे बिना गयी ,इसी से बवाल किया |
-और क्या-क्या किया मेरे भाई?”
उसे भागी हुई औरत के रूप में चारों ओर बदनाम किया
- पर यह सच नहीं था !
कोई झूठ बार-बार बोला जाए ,वह सच लगने लगता है|
-आगे क्या हुआ भाई ?”
कर ली मैंने दूसरी शादी |
- बिना तलाक के ?’
मर्द कुछ भी कर सकता है |
-कहीं से नहीं उठी विरोध की आवाज?”
नहीं सब थे मेरे साथ |जानते थे, मैं हूँ पत्नी का छोड़ा बेचारा,बच्चे को भी चाहिए माँ का सहारा |
-पत्नी ने नहीं किया एतराज ?
कोई नहीं था उसके साथ |स्वार्थी था उसका परिवार और देवी अभी पढ़ रही थी न |  
..पर बच्चा ...
उसे तो अपने पास ही रखना था ,बदजात से बदला लेने के लिए ,बच्चे के लिए उम्र भर तड़पाने के लिए|
-अब इतने वर्षों बाद क्या परेशानी?”
हो गया हूँ चार बच्चों का पिता ,बढ़ गयी है मेरी ज़िम्मेदारी |वह मजे में है नहीं कोई दुश्वारी |कमाया है उसने बहुत नाम ,चाहता हूँ हो जाए बदनाम |दे यह समाज उसे भागी हुई निर्मम माँ का खिताब ताकि रो-रोकर काटे उम्र,सबको देते हुए जबाब |



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