Thursday 23 June 2016

किशोरावस्था -दो कविताएं

1-
अपना सब कुछ लुटाकर भी 
पाना चाहते हैं सब 
जिस उम्र को 
कितने उथल-पुथल 
तनावों से गुजरती है वह उम्र
कोई नहीं जानता 
देह-मन में दौड़ती है 
आवेगमयी नदी जिसे रोकना होता है 
बहना होता है बांधों में बंधकर 
शांत शीतल बिना हरहराए 
पछाड़ खाए 
उम्र के हिसाब से |
2  -
जब पुकारता है 
देह-मन का रोम-रोम 
प्रेम...प्रेम 
बंधना चाहता है विपरीत के आकर्षण में 
सख्त हिदायतों की तख्ती लटका दी जाती है 
उसके गले में 
जिस पर लिखा होता है –प्रेम वर्जित फल है
नीरस किताबों कैरियर के बड़े से सोखते से 
सुखाई जाती हैं बार –बार रिस आती 
रससिक्त भावनाएँ 
सिर उठाते ही दबा दी जाती हैं 
उन्मादित इच्छाएँ 
वय:संधि की यह उम्र 
दूर से देखने पर 
सरल,सीधी साफ-सुथरी दिखती है 
होती है टेढ़ी ,वक्र और पंकिल 
जरा सी लापरवाही से 
गिरा सकती है दलदल में|

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