Sunday 11 December 2016

किस मंत्र से

इस कड़कती ठंड में
थोड़े-से पुआल और
पुराने कम्बल के सहारे 
बैलगाड़ी के नीचे
चैन से सोते हैं वे
साँझ-ढले ईंट के चूल्हे पर
काली पड़ गयी बटुली में
भात पकाते हैं
सेंकते हैं गोईंठे पर
गोल,सुडौल,चित्तीदार लिट्टियाँ

तो कभी मोटी-मोटी
लाल लाल रोटियाँ बनाते हैं
बटुली में खदबदाती उनकी
आलू-गोभी,बैंगन-मटर की
सब्जी को देखकर
मुँह में भर आता है पानी
कई जन मिलकर पकाते-खाते हैं
धूल-मिट्टी,कीड़े-मकोड़े से निश्चिंत
खुलकर हँसते-बतियाते हैं
दिन-भर बेचते हैं पशु-आहार
घास,भूसा और छांटी
रात को देर तक बेलौस गीत गाते हैं
सोचती हूँ किस मंत्र से ये गाड़ीवान
इतनी कठिन जिंदगी को
'यूँ' जी पाते हैं ?

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