Tuesday 21 March 2017

मुग्ध पुरूष

कुछ दिन पहले डीका कुमारी नामक एक लड़की[ जो दसवीं की छात्रा थी और बिहार के हाजीपुर के राजकीय अम्बेडकर विद्यालय छात्रावास में रहकर पड़ती थी...]के साथ न केवल बलात्कार हुआ बल्कि उसके स्त्री अंग  को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करके उसे लहूलुहान मरणावस्था में छोड़ दिया गया|वह अपने ही छात्रावास के नाली में मरी पड़ी मिली |उसने एक दिन अपनी माँ को बताया था कि एक टीचर उसको नम्बर बढ़ाने का प्रलोभन देकर उसे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की बात कहता है |उसने अपनी माँ को कहा -आओ और मुझे यहाँ से ले जाओ| जब तक उसकी माँ आती उसे मार दिया गया| देश में रोज न जाने कितनी डीका कहीं महानगरों में तो कहीं गांवो में तो कहीं दूर दराज के इलाकों में इसी बेरहमी का शिकार हो रही हैं | मीडिया के माध्यम से कुछ की ख़बर हम तक पहुँचती है तो बहुतेरी ख़बरें बेख़बर कर दी जाती हैं| यह एक डीका की बात नहीं है और ना ही शिक्षण संसथाओं तक यह सीमित है |हर क्षेत्र में हर जगह ऐसी मानसिकता के लोग मौजूद हैं
 |क्यों हो रहा है ऐसा ?क्यों होता आया है ऐसा ? पितृ सत्तात्मक व्यवस्था और उसकी पोषक वर्तमान सत्ता संरचना क्यों इसका पोषण करती है |आईए इस पर विचार करते हैं |
रीति कालीन नायिका भेद में मुग्धा नायिका का वर्णन आता है पर नायक भेदों में मुग्ध नायक का नहीं |पर पुरूष खुद पर ज्यादा मुग्ध रहते हैं ?किसलिए हते हैं ,इसका शोध परिणाम बड़ा दिलचस्प है  |रूपवान हो तो रूप पर ,गुणवान हो तो गुण पर ,शक्तिमान हों तो शक्ति पर, यहाँ तक तो फिर भी समझ में आता है पर जिनमें इनमें से कुछ भी नहीं, वे अगर खुद पर मुग्ध हैं तो इसका कारण यह है कि ये अपने पुरूष होने पर मुग्ध हैं |यह मुग्धता समाज की देन है |उसी ने उनमें श्रेष्ठता का भाव उपजाया है क्योंकि उनके पास एक ऐसी चीज है ,जिसकी इस देश में पूजा होती है और ज्यातर स्त्रियाँ ही बड़े विधि-विधान से इस पूजा को करती देखी जाती हैं | जिस पारिवारिक माहौल में वे पलते –बढ़ते हैं , उसमें स्त्री की भी भूमिका पाकर मन को ठेस लगती है | घर-परिवार में उनके लिए विशेष खान-पान ,पौष्टिक भोजन का प्रावधान वे ही करती हैं |वे ही उनकी गलतियों पर पर्दा डालती हैं |बाहर से अपराध करके लौटेने पर उन्हें अपने आँचल तले छिपा लेती हैं |
हमारे नीम-हकीमों से लेकर योगी-मुनि तक सदियों से इके ही बलबर्धन के लिए भस्म चूर्ण बनाते रहे हैं | हर तरह से जिसका सबलीकरण किया हो ,वह क्यों न खुद पर मोहित हों |कभी-कभी यह मोह इतना बढ़ जाता है कि वे यह सोचने लगते हैं कि स्त्रियॉं को बस यही चीज चाहिए |और इसी से वे वश में की जा सकती हैं |इसी कारण गाहे-वगाहे उसका प्रदर्शन करते हैं और उसकी ताकत आजमाते रहते हैं | जिन्हें अपने पर उतना विश्वास नहीं रहता है वे समूह में जौहर दिखाते हैं |स्त्री हंस-मुस्कुराकर उनसे बात भर कर ले तो उन्हें लगता है कि वे बस उसी के लिए मरी जा रही हैं |माँ कहती थी स्त्री को अपने से ज्यादा सुंदर पुरूष नहीं चुनना चाहिए वरना वह सुखी नहीं रहती |सुंदर और गुणी पुरूष दोहरे मुग्धपन का शिकार होता है और कभी एकनिष्ठ नहीं हो पाता |

ये मुग्ध पुरूष अपनी जरा सी भी अवहेलना नहीं सह पाते |’ना सुनना इन्हें अपमान लगता है |इस अपमान का बदला तेजाब से बलात्कार तक है | सभी नायिकाएँ मुग्धा नहीं होतीं ,पर लगभग सभी पुरूष आत्ममुग्धता के शिकार होते हैं |मुग्धा नायिका की एक सीमा है ,मुग्ध पुरूष की नहीं |क्योंकि स्त्री के पास जो चीज है ,वह अपवित्र की जा सकती है ,लूटी जा सकती है ,दांव पर लगाई जा सकती है,बेची जा सकती है ,नष्ट की जा सकती है इसलिए वह रक्षणीय है ,सीमित है,पूजनीय तो कदापि नहीं |हालांकि तंत्र साधना में उसकी भी पूजा का प्रावधान है ,पर यह पूजा श्मशान में की जाती है ,समाज में यह मान्य नहीं |एक बापू पर इस तरह की पूजा का आरोप है,पूजा वे भोग लगाने के लिए करते थे [ इस समय वे जेल में है ]आत्ममुग्ध पुरूष अपनी उम्र नहीं देखता ,सामर्थ्य नहीं देखता बस अक्षत कन्याओं को देखता है |पता नहीं उसे क्यों भ्रम होता है कि कन्याएँ उस पर मुग्ध हो सकती हैं ?वह सारे दांव चलता है |वह भूल जाता है कि कोई कन्या अपने समवयस्क पर ही मुग्ध हो सकती है,उसी से प्रेम कर सकती है |अगर कोई कन्या उसका विरोध करती है तो वह खूंखार हो उठता है |वह उस चीज को नष्ट करने के लिए इतने बीभत्स तरीके अपनाता है कि इंसान र्रा उठे |मेरी क़लम उस वीभत्सता का वर्णन करने से इंकार कर रही है |

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