यह स्त्री सशक्तीकरण का दौर है
अब डरने की कोई बात नहीं
छिप कर रहने का समय गया
वह भी है आजाद
घूम-फिर सकती है मर्जी से
नाच सकती है
प्रेम-बीन पर
पेड़ की डाल पर बैठा बंदर
कुढ़ रहा था सर्पिणी को देखकर
कई बार कर चुका था कोशिश
उसे लुभाने की ..डराने की
चाहता था कि उसकी बोली बोले सर्पिणी
एक दिन हद हो गयी
नाराज बंदर ने लपक कर पकड़ ली उसकी गर्दन
और जा बैठा सबसे ऊंची डाल पर
सर्पिणी का चेहरा अपने चेहरे के सामने कर बोला
-बोल कू ऊउउऊ
कैसे बोले सर्पिणी
गर्दन की नसें तन गयी थीं
मुँह लाल था मजबूत मुट्ठियों की गिरफ्त में
बंदर और नाराज हुआ
नहीं निकली अभी अकड़
और रगड़ डाला बेदर्दी से
उसका मुँह डाल से
फिर चलता ही रहा यह क्रम
मुँह का डाल से रगड़ना
फिर लाकर चेहरे के सामने चेहरा
अपनी बोली बोलने को कहना
सर्पिणी कमजोर नहीं थी
था उसे नियम-कानून भी पता
छूट पाती तो हर लेती अपने विष से
बंदर के प्राण
कमजोर नस बंदर के गिरफ्त में थी
इसलिए विवश थी
निर्जीव देह फेंक दिया बंदर ने
बेदर्दी से धरती पर
और जोर से हँसा-मुझसे स्त्री जागरण !
अब डरने की कोई बात नहीं
छिप कर रहने का समय गया
वह भी है आजाद
घूम-फिर सकती है मर्जी से
नाच सकती है
प्रेम-बीन पर
पेड़ की डाल पर बैठा बंदर
कुढ़ रहा था सर्पिणी को देखकर
कई बार कर चुका था कोशिश
उसे लुभाने की ..डराने की
चाहता था कि उसकी बोली बोले सर्पिणी
एक दिन हद हो गयी
नाराज बंदर ने लपक कर पकड़ ली उसकी गर्दन
और जा बैठा सबसे ऊंची डाल पर
सर्पिणी का चेहरा अपने चेहरे के सामने कर बोला
-बोल कू ऊउउऊ
कैसे बोले सर्पिणी
गर्दन की नसें तन गयी थीं
मुँह लाल था मजबूत मुट्ठियों की गिरफ्त में
बंदर और नाराज हुआ
नहीं निकली अभी अकड़
और रगड़ डाला बेदर्दी से
उसका मुँह डाल से
फिर चलता ही रहा यह क्रम
मुँह का डाल से रगड़ना
फिर लाकर चेहरे के सामने चेहरा
अपनी बोली बोलने को कहना
सर्पिणी कमजोर नहीं थी
था उसे नियम-कानून भी पता
छूट पाती तो हर लेती अपने विष से
बंदर के प्राण
कमजोर नस बंदर के गिरफ्त में थी
इसलिए विवश थी
निर्जीव देह फेंक दिया बंदर ने
बेदर्दी से धरती पर
और जोर से हँसा-मुझसे स्त्री जागरण !
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