Thursday 20 October 2016

मैं शायर तो नहीं फिर भी..

वो न मिल पाया तभी तो कशिश है
कशिश न मिटे इसी की कोशिश है।
वो न मिल पाया इसका क्या रोना
जिसको मिला है वो भी रो रहा है।
भूख हमें भी लगती है जनाब 
औरत हूँ तो क्या इंसान नहीं हूँ
|
युगों से तुम्हारी ही तो चलती आई है जनाब 
आज हमने भी चला ली कयामत क्यों आ गयी ?
कह दिया तो कह दिया तुम कहते रहे सदा 
सुन लिया बस सुन लिया तुमसे सुना न गया |
वो ठीक था तुम्हें ठीक जो लगा 
जो ठीक न लगा तुम्हें बेठीक हो गया ?
प्रेम करते वक्त वो इंसान था मेरी तरह 
अधिकार दे दिया तो भगवान हो गया |
बहुत से प्रश्नन हैं तुम्हारे प्रश्न पत्र में 
उत्तर बस एक कि अब उत्तर नहीं देना |
जो कुछ पाया मेहनत से पाया 
बहुत ना पाया इसका क्या रोना ?
उसकी नजर में हम कतरें हैं लेकिन 
हमसे ही तो वो समंदर बना है


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