जब मिल जाती हैं रूहें देह की क्या औकात
वह रहे जहां
कहीं भी और किसी के साथ |
जिस एक में मेरी सारी दुनिया
उसके लिए मैं दुनिया में एक |
प्रेम की नदी को तैरकर निकल
गए
गहरे उतरते तो मोती जरूर पाते|
छ्लछलाई रहती है आँखों की नदी
|
क्या आँखों में रहने लगा है कोई
?
देह को पा लेना आसान है बहुत
रूह तक पहुँचते तो खुदा को
पाते |
कौन लिखवा रहा है शेरो शायरी मुझसे
भीतर मेरे ये कौन शायर आ बैठा है ?
शेरो शायरी का शऊर नही मुझको
जज़्बात बस शेरों में ढल जाते हैं
जिसने प्यार का
इजहार नहीं किया
क्या उसने कभी
प्यार नहीं किया ?
कभी गोपियाँ कभी
रानियाँ रही अनेक
फिर भी कृष्ण की
राधा हुई बस एक |
रोकती है दुनिया
रोकते हैं रीति-रिवाज भी
पर मिल ही जाते
हैं वे सपनों में आज भी |
तन में मन में
सांस में धड़कन में
कहाँ कहाँ बताएं
जहां वह है
पर क्या करें जो मुकद्दर में नहीं है |
प्यार सोना है
टूट-टूटकर भी जुड़ता है
विरह की आग में
जितना तपे निखरता है |
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