चक्रव्यूह से मैं निकल ना सकी कभी
एक व्यूह काटा दूसरा सामने आ गया।
मुझसे ही दूर खड़ी है जिंदगी
हैरान हूं क्या यही है जिंदगी।
प्रेम कहाँ मिल पाता है सबको
जिन्हें मिला मुबारक हो उनको|
जो सोचकर किया जाए नादानियाँ होंगी ।
प्रेम कहाँ सोच-समझकर किया जाता है।
धरती का धैर्य छूटे आकाश की मर्यादा
मौसमों के रंग बदले पर हम न बदलें।
उसको जाना है समझा है तभी तो ख्वाबों में सजाया है
कुछ तो ख़ास बात है उसमें जो वही मन को भाया है|
ये किसका चेहरा किताबों में है मुस्कुराता कौन गुलाबों में है
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