बसंत गीत
काँटों में सुंदर फूल खिले
तुम जब यूँ मुझसे आके मिले
मह-मह महका मोजर-सा तन
चह-चह चहका गौरेया-मन
देखो ना सहजन सहज हुआ
अधरों के भीगे पात हिले
इक पतझर-सा आ ठहरा था
तुम बिन जीवन के उपवन में
अब आए हो तो देखो ना
कलियाँ भौंरों से गले मिले
धरती की धानी चूनर पर
गुलमोहर टेसू दमक उठे
फिर हुए शराबी आम्र-कुञ्ज
मदमस्त हवा के केश खुले |
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