इतनी जगह कैसे बची रह गयी
मेरे मन में
इतने हादसों के बाद
कहाँ बचा रह पता है
कुछ भी साबुत
...फिर कैसे बची रह गयी मैं
पूरी की पूरी
निश्छल वैसी ही
इस वय और इन हालातों में
जब कि हमारे बीच
दो ध्रुवों की दूरियां हैं
क्या है जो उमग रहा है
फिर भी
अच्छे लगने लगे हो
तुम इतना
एक बार फिर
क्यों बेमानी हो उठा है
सब कुछ
इस वय में फिर
एक बार|
मेरे मन में
इतने हादसों के बाद
कहाँ बचा रह पता है
कुछ भी साबुत
...फिर कैसे बची रह गयी मैं
पूरी की पूरी
निश्छल वैसी ही
इस वय और इन हालातों में
जब कि हमारे बीच
दो ध्रुवों की दूरियां हैं
क्या है जो उमग रहा है
फिर भी
अच्छे लगने लगे हो
तुम इतना
एक बार फिर
क्यों बेमानी हो उठा है
सब कुछ
इस वय में फिर
एक बार|
bahut hi sunder ji
ReplyDeletesunder
ReplyDeleteChhoti lekin Achhee kavita.samvedna ke bimb acche hain.Dhanyabad.
ReplyDeletenice one
ReplyDeletesabdo ke pankh par bhavo ke udan sekavita ke dwara dil me utarkar anand ka srizan karne ke liye bahoot aabhar
ReplyDelete"जब कि हमारे बीच/ दो ध्रुवों की दूरियां हैं/ क्या है जो उमग रहा है/ फिर भी/ अच्छे लगने लगे हो/ तुम इतना/ एक बार फिर" यह लिख कर फिर यह कहना कि "क्यों बेमानी हो उठा है/ सब कुछ/ इस वय में फिर/ एक बार." एक साथ संयोग व वियोग के विरोधाभासी चित्र खींचता है। अनुभूतियों की इस प्रखरता की प्रस्तुति के लिए बधाई।
ReplyDeleteइतनी जगह कैसे बची रह गयी
ReplyDeleteमेरे मन में
इतने हादसों के बाद
dil me jagah ho to sab apane ban jate hai.. achhi kavita badhai Ranjana jee
NiceNice
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