Sunday 17 July 2011


पहले कविता –संग्रह “मछलियाँ देखती है सपने” का ब्लर्ब लिखते हुए परमानंद श्रीवास्तव जी ने कहा _

‘मछलियाँ देखती हैं सपने’ रंजना जायसवाल की छोटी –बड़ी ...कविताओं का पहला ही संग्रह है.एक नई शुरुवात!एक नया साहस ! कागज पर लिखने भर का नहीं ,वास्तविक दुनिया से जिरह करने ,पूछने ,उलझने का साहस !संभव है कि इनमें एक तरह का कच्चापन या अनगढ़पन लगे ,लगे कि कविता रणनीति या स्पष्ट विचार होती जा रही है ,पर यही रंजना का अपना व्यक्तित्व है ,अपना सक्रिय हस्तक्षेप ,अपनी जिद .आप मानें  न मानें _कविता उसके लिए एक सीधी कार्रवाई है ,एक सपना ही सही ,उसे संघर्ष की निरंतरता में सच करने का दुस्साहस .

इसीलिए उसके भीतर की स्त्री अपने औजारों से लड़ती है और आप कहते है कि उसने कविता की है .

और सदानंद साही ने कहा_

रंजना जायसवाल की कविताएँ स्त्री –मन की कविताएँ हैं _एक सवतंत्र स्त्री मन की कविताएँ!स्त्री –मन उत्सुकता और कौतुहल जगाता है जबकि स्वतंत्र स्त्री –मन अनेक प्रश्नों और आशंकाओं को जन्म देता है .हमारी सामाजिक रचना ने स्त्री –मन के साथ स्वतंत्र विशेषण को असंभव का दिया है .रंजना की कविताएँ नए सिरे से स्त्री –मन के लिए स्वतंत्र विशेषण अर्जित करने का यत्न करती हैं

स्त्री की दुनिया में

सब कुछ है

घर –परिवार

नाते –रिश्ते

समाज –संसार

बस नहीं है

वह  खुद .  

 “मछलियाँ देखती हैं सपने” में वह खुद सार्थक ढंग से उपस्थित हैं .

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