Friday 15 July 2011

“तुम्हें कुछ कहना है भर्तृहरि "

प्रथम कहानी-संग्रह “तुम्हें कुछ कहना है भर्तृहरि" के बारे में  मैत्रेयी पुष्पा ने कहा-
 सामाजिक शुद्धतावादियों का जायका खराब करने वाली इन दिनों कोई बात है ,तो वह  है –स्त्री के अधिकारों पर तर्कसंगत बहस करना .इस बहस ने सामाजिक व साहित्यिक विमर्श में अपनी जगह बनाकर जैसे अनाधिकार चेष्टा की हो और इसका समूल उच्छेदन बहुत जरूरी हो .बड़ी शर्म आती है जब कुछ मुँहजोर स्त्रियां यौनिकता पर चर्चा करती हैं और बड़ा क्रोध आता है ,जब इस मुद्दे पर वे अपने फैसलों को लागू करने की हिमायत करती हैं .जो बातें अब तक पर्दे में थीं ,जो विधान अब तक बैध माने गए ,वे खुलकर सामने आएँ और पर्देदारी के नियम की अवहेलना करते हुए “अवैध “घोषणाएँ करें ,कहो कैसे बर्दाश्त किया जाए?शर्मो –हया के आवरण के पीछे रहने वाली औरत अपने रूप में निर्लज्ज होकर सामने कड़ी है .शांत व सुव्यस्थित समाज के लिए खतरे की घंटी ही नहीं ,आंधी –तूफानों की घनघोर आमद है ,शायद हमारे ऋषि –मुनियों ने ऐसे ही समय का नाम “कलयुग “रखा होगा .रंजना की कहानी “अथ मेलाघुमनी कथा ‘हो या “तुम्हें कुछ कहना है भर्तृहरी!”मर्यादा के फूलों भरे वृक्षों पर आंधी –तूफान उतारने को है,क्योंकि रंजना के शब्दों में “–औरत ने जो खोया है वह प्रेम करने के कारण और मर्द ने जो पाया है ,प्रेम न करने के कारण “ यह कथन स्त्री को उसकी स्थिति समझाने के लिए “बीज –वाक्य “है
'कठपुतलियाँ “ यह शब्द स्त्री को प्रस्तुत करने वाले पत्रों के लिए प्रयोग में लाया जाता है .भले यहाँ पुरुष पात्र भी हों .व्यवस्था व सत्ता से संचालित लोग अपने बूते क्या कर सकते हैं ,रंजना का सवाल अपने पैनेपन के साथ खड़ा है ,सवालों के त्रिशूलों भरा कहानियों का विस्तृत वन –जंगल रंजना को उत्तर खोजने के लिए कभी गाँव ले जाता है ,तो कभी शहरी सभ्यता के रंगीन व मखमली आवरण उधेड़ने के लिए उकसाता है.विभिन्न विषयों पर अपनी पड़ताल जरी रखतीं ए कथाएँ ,कहानी विधा के लिए अगले सोपनोंके निर्माण में सहायक ही नहीं सन्नद्ध हैं .मुझे विश्वास है कि ऐसी ही बेवाकी रंजना अपनी कहानियों में कायम रखेगी और इसी साफगोई से स्त्री लेखन की भी प्रतिबद्धता तय  होगी .

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