Wednesday 20 July 2011

नयी दुनिया



हर आदमी के पास
होती है
थोड़ी –सी ताकत
थोड़ी –सी उम्मीद
थोड़ी –सी मुहब्बत
आओ
मिला दें हम
अपनी –अपनी
ताकत  उम्मीद और मुहब्बत
जिससे
बन जाए
शायद कोई
नई दुनिया


२ -फिर क्यों


न पहले ही धूप थी
न अब
अँधेरा हुआ है
फिर क्यों
लगता है
कुछ तो
नया हुआ है


३-बसंत .


पत्ते झर रहे हैं
पीले पड़कर
टहनियाँ सूख रही हैं
हो रहा है ठूंठ
पेड़
धीरे –धीरे
फिर भी
सपनों में बसंत है


४-कभी –कभी


साँपों को
आस्तीन में रखना पड़ता है
कभी –कभी
पनाह देना पड़ता है
गिरगिट को
घर की चाभियां
चूहों के हवाले करनी पड़ती है
घर की सलामती के लिए
कभी –कभी .


५- जाने क्या


लहरें
बार –बार
टकराती हैं
तट से
जाने क्या खोजती हैं
बार –बार
और हर बार
लौट जाती हैं


६- पवन


थर –थर कांपता है
फूलों का पेड़
पवन को आते देख
कमजोर बूढ़े बाप की तरह डांटता है 
कलियाँ को
क्यों नहीं रहतीं छुपकर
पत्तियों में
बेपरवाह कलियाँ
खिलखिलाती हैं
छिपाती हैं मुँह
पत्तियों की ओट में
करती हैं इंतजार
उचक कर देखती हैं
अभी तक आया नहीं क्यों
पवन |

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