Friday 15 July 2011

दुःख –पतंग का ब्लर्ब

कपिलदेव                                                                          
रंजना की कविता अपने –आप से और समाज से विमर्श करती ऐसी कविता है ,जो कविता को निष्ठुर बौद्धिकता से उबार कर नैसर्गिक भावुकता की तरफ ले जाने का प्रस्ताव करती है .तुर्की कवि आकग्यून ने कहा है कि “आज हम एक ऐसी विखंडित दुनिया में रहने को अभिशप्त हैं ,जहां कवि के बाल –सुलभ हृदय ने उसके जिस्म से इस्तीफा दे दिया है ,ऐसे वक्त में कवि को एक नवजात शिशु की तरह अपना दिल सहेजना चाहिए .” आकोवा की यह टिपण्णी हमें आगाह करती है कि आज की कविता अपने मूल स्वभाव को खोकर किस हद तक बौद्धिक हो गई है .रंजना की कविता का सबसे बड़ा साहित्यिक मूल्य यही है कि उनकी कविता में बाल –सुलभ हृदय की तरफ पुनर्वापसी का साहसिक प्रयत्न दीखता है .उनके यहाँ कविता एक सुंदर स्वप्न है .प्रकृति में समाहित रूप –रस और गंध को महसूसने का माध्यम ,औदात्य की खोज .जिस्म से हृदय को जोड़ने की पहल.
रंजना जीवन में प्रेम की प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष करती हुई ऐसी कवयित्री हैं ,जिसने प्रेम को ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य भी माना है और लक्षण भी .रंजना के पास सिर्फ एक मानदंड है –प्रेम .वह  मनुष्य और समाज दोनों की पहचान इसी मानदंड से करती हैं .दृश्यगत दुनिया से अधिक सुंदर दुनिया की आकांक्षा को साकार होते देखने की भावुक व्याकुलता के साथ लिखी गई रंजना की कविताओं का अंतर्बोध इतना आवेगमय ,गहरा और मार्मिक है कि इसके मुकाबले दुनिया के सारे विमर्श फीके लगने लगते हैं.
बौद्धिक या विचारपरक मंथन उनकी कविता का लक्ष्य नही है .वः तो मानवीय संबंधों के जीवित सन्दर्भों को कविता में सीधे उतरना चाहती हैं,इसीलिए उनकी कविता संवादधर्मी भी है और सम्बोधनधर्मी भी है संबोधन के शिल्प से वह  कविता में जो भावुक वातावरण रचती हैं ,उसके पाशर्व में एक स्त्री बिम्बित होती दिखती है –पूरे समाज से जिरह करती स्त्री .स्त्री –चेतना की सतत उपस्थिति उनकी कविता को जो विश्वसनीयता प्रदान करती है ,वह शायद आज की कविता में नया आयाम है .
निश्चय ही इन कविताओं की सरलता और भावुक संवेदनशीलता उन पाठकों को भी संस्कारित करेगी ,जिन्हें आधुनिक कविता की जटिलता ने काव्य –विमुख कर दिया है .

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