सिर्फ कागज पर नहीं
लिखी जाती है कविता
किसान लिखता है
जमीन पर
शिल्पकार पत्थर ..मिट्टी
बढ़ई लकड़ी पर
स्त्री घर के कोने –कोने में
रचती है कविता
माँ की हर लोरी
बच्चे की किलकारी
तुतली बतकही
घरनी की चुपकही
प्रेमियों की कही –अनकही में
होती है कविता
पौधे के पत्ते- पत्ते
फूल की हर पंखुरी
तितली के रंगीन परों पर
इठलाती है कविता
गौर से सुनो तो
गौर से सुनो तो
कोयल की कूक
पपीहे की हूक
पक्षी की चहचहाहट
घास की सुगबुगाहट
भौरों की गुनगुनाहट में भी
लजाती ...मुस्कुराती
खिलखिलाती है कविता
सिर्फ कागज पर
नहीं लिखी जाती है कविता
are vaah.....kavitaa tere kitte saare roop....!!
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