Wednesday 28 September 2011

स्त्री -आत्मनिर्भरता


कस्बों और छोटे शहरों की दुकानों में भी
दिख रही हैं आजकल
काम करती हुई
कमसिन,सुन्दर,अविवाहित लड़कियाँ
दुकान चाहे मोबाईल की हो
या डाक्टरी की
ब्यूटी की या आभूषणों की
हर जगह मौजूद हैं
कमसिन,सुंदर,अविवाहित लड़कियाँ
आप इसे बदलते समाज में
बढ़ती हुई स्त्री आत्म-निर्भरता का नाम दे सकते हैं
जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है
ये लड़कियाँ न तो ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं
ना उक्त काम की अपेक्षित जानकारी है
ना तो काम उनका कैरियर है
ना आत्मनिर्भरता
वे खुद भी गंभीर नहीं हैं काम के प्रति
बस टाइमपास कर रही हैं विवाह से पहले तक
कुछ पैसे भी मिल जाते है बदले में
शौक पूरा करने के लिए
इसलिए खुश हैं
कमसिन,सुंदर,अविवाहित लड़कियाँ |
दुकानदार जानते हैं यह बात
रखते भी हैं इन्हें इसीलिए
उनको काबिलियत नहीं फ्रेश चेहरे से मतलब है
जिनसे खींचे चले आते हैं ग्राहक
वेतन भी देना पड़ता है मामूली-सा
दिल भी बहलाती हैं  
और चली जाती हैं आसानी से
जब तक कि बासी पड़ें इनके चेहरे
इनके जाते ही आ जाते हैं फिर
कुछ नए फ्रेश चेहरे  
जिनसे खींचे चले आते हैं ग्राहक
लड़कियाँ भी खुश हैं
काम के बहाने पा लेती हैं
चूल्हे-चौके से फुरसत
सज-धजकर निकलती हैं
मुक्त होती हैं बंदिशों
वर्जनाओं से
लेती हैं खुली हवा में साँस खुलकर
जी लेती हैं जिंदगी अपनी मर्जी से
कुछ घंटे
कहती हैं –‘शादी की पड़ते ही नकेल
बनना ही है कोल्हू का बैल’
लड़कियों की इस सोच से
दुकानदारों के पौ बारह हैं |
खुद्दार,समझदार,और ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़कियाँ
नहीं टिक पाती इन दुकानों पर
खुद्दार आग हो जाती हैं
खुद को समझे जाने पर ‘सामान’
समझदार हिस्सा चाहती हैं उस मुनाफे में
जो आता है उनकी बदौलत
उच्च-शिक्षित काम के अनुसार वेतन और
काम के घंटे निर्धारित करने की बात करती हैं 
दुकानदार निकाल फेंकता है बाहर
ऐसी लड़कियों को दूध की मक्खी की तरह
उनके जाते ही आ जाती हैं और भी कम पैसे में
कमसिन,सुंदर,अविवाहित लड़कियाँ
दुकानदार फिर कमाने लगता है बिना तनाव के
दुहरा-तिहरा लाभ
नई उम्र की ऊर्जा,शक्ति और सौंदर्य का
करके भरपूर इस्तेमाल
आप चाहें तो इसे बदलते समाज में
बढ़ती हुई स्त्री आत्म-निर्भरता का नाम दे सकते हैं
जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है |

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