‘आओ,आओ साहब
यहाँ देशी परवल है
आकार में छोटी है
असली रंग है
बिना खाद की भिण्डी है
महँगी तो होगी ही
देशी है
शुद्ध है
असली है|’
सब्जी-बाजार में बेचीं जा रहीं हैं सब्जियाँ
महँगे दामों में देशी नाम पर
ग्राहकों की भीड़ वहीं ज्यादा है
जबकि आकार में बड़ी
चटख रंगों वाली सब्जियाँ
थोड़ी सस्ती हैं
उनपर विश्वास नहीं है ग्राहकों को
-‘केमिकल के कारण बड़ी हैं
रंगी हुई हैं इसलिए हरी हैं
लगता है विदेशी हैं |’
कितना अजीब है
कि वे ही लोग हैं
जो कपड़े,विलासिता की वस्तुएँ
खरीदते हैं विदेशी नाम पर
जो उसी तरह नहीं होतीं विदेशी
जैसे नहीं होती देशी पूरी देशी
देशी दाल में विदेशी मक्खन की छौंक
विदेशी दाल में देशी घी का तड़का
मिलावट सबमें है
असली कहाँ जनता की किस्मत में है |
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