इस कड़कती ठंड में
थोड़े-से पुआल और
पुराने कम्बल के सहारे
बैलगाड़ी के नीचे
चैन से सोते हैं
साँझ-ढले ईंट के चूल्हे पर
काली पड़ गयी बटुली में
भात पकाते हैं
सेंकते हैं गोईंठे पर
गोल,सुडौल,चित्तीदार लिट्टियाँ
तो कभी मोटी-मोटी,लाल-लाल
फूली-फूली रोटियाँ बनाते हैं
बटुली में खदबदाती उनकी
आलू-गोभी,बैंगन-मटर की
सब्जी को देखकर
मुँह में भर आता है पानी
कई जन मिलकर पकाते-खाते हैं
धुल-मिट्टी,कीड़े-मकोड़े से निश्चिंत
खुलकर हँसते-बतियाते हैं
दिन-भर बेचते हैं पशु-आहार
घास,भूसा और छांटी
रात को देर तक बेलौस गीत गाते हैं
किस मंत्र से ये गाड़ीवान
कठिन जिंदगी को
'यूँ' जी पाते हैं ?
थोड़े-से पुआल और
पुराने कम्बल के सहारे
बैलगाड़ी के नीचे
चैन से सोते हैं
साँझ-ढले ईंट के चूल्हे पर
काली पड़ गयी बटुली में
भात पकाते हैं
सेंकते हैं गोईंठे पर
गोल,सुडौल,चित्तीदार लिट्टियाँ
तो कभी मोटी-मोटी,लाल-लाल
फूली-फूली रोटियाँ बनाते हैं
बटुली में खदबदाती उनकी
आलू-गोभी,बैंगन-मटर की
सब्जी को देखकर
मुँह में भर आता है पानी
कई जन मिलकर पकाते-खाते हैं
धुल-मिट्टी,कीड़े-मकोड़े से निश्चिंत
खुलकर हँसते-बतियाते हैं
दिन-भर बेचते हैं पशु-आहार
घास,भूसा और छांटी
रात को देर तक बेलौस गीत गाते हैं
किस मंत्र से ये गाड़ीवान
कठिन जिंदगी को
'यूँ' जी पाते हैं ?
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