Friday 4 May 2012

गिद्ध की नाराजगी


पर्यावरणविद चिंतित थे
कि जाने कहाँ चले गए
प्रकृति के सफाई-कर्मी गिद्ध
चारों तरफ लगा हुआ था
गंदगी का अम्बार
बढ़ गया था नगरपालिका का काम 
हवा,जमीन सब अशुद्ध 
आदमी भी बीमार रहने लगा था  
सब परेशान -गिद्ध गए तो कहाँ गए ?
कहा किसी ने "कवि तो पहुँचता है
वहाँ भी,जहाँ नहीं पहुँच पाता रवि"
कवि पता लगाकर आएं |
शहर का सूनसान देखा 
गाँव का वीरान भी 
उजाड़-सूखे पेड़ देखे 
अनगिनत ठूँठ भी 
लौटते हुए निराश 
दिख गया अचानक 
ठूँठ पर बैठा एक गिद्ध 
की मिन्नत-अरे भाई गिद्ध,यहाँ क्या कर रहे हो ? 
क्या हमसे रूंठे हुए हो ?
चिल्लाया गिद्ध-"चुप ही रहो कवि,बातें ना बनाओ 
खबरदार,मेरे पास न आओ !
ये भी कोई बात हुई –हम गंदगी पचाएं
फिर भी अछूत कहाएँ !
हमारे पूर्वज ने बचाने में सीता की लाज 
अपनी जान गंवाईं 
फिर भी अपनी गंदी निगाह को 
गिद्ध-दृष्टि कहते
आदमी को लाज नहीं आई
मुहावरों,उपमाओं में भी हमें
अशुभ और बुरा बताया
कभी नहीं हमसे प्रेम दिखाया  
कब तक हम अपने सीने पर मूंग दले
जाओ-जाओ आदमियों से तो
हम गिद्ध ही भले !

No comments:

Post a Comment