पर्यावरणविद चिंतित थे
कि जाने कहाँ चले गए
प्रकृति के सफाई-कर्मी गिद्ध
चारों तरफ लगा हुआ था
गंदगी का अम्बार
बढ़ गया था नगरपालिका का काम
हवा,जमीन सब अशुद्ध
आदमी भी बीमार रहने लगा था
सब परेशान -गिद्ध गए तो कहाँ गए ?
कहा किसी ने "कवि तो पहुँचता है
वहाँ भी,जहाँ नहीं पहुँच पाता
रवि"
कवि पता लगाकर आएं |
शहर का सूनसान देखा
गाँव का वीरान भी
उजाड़-सूखे पेड़ देखे
अनगिनत ठूँठ भी
लौटते हुए निराश
दिख गया अचानक
ठूँठ पर बैठा एक गिद्ध
की मिन्नत-अरे भाई गिद्ध,यहाँ क्या कर रहे हो ?
क्या हमसे रूंठे हुए हो ?
चिल्लाया गिद्ध-"चुप ही रहो कवि,बातें ना बनाओ
खबरदार,मेरे पास न
आओ !
ये भी कोई बात हुई –हम गंदगी पचाएं
फिर भी अछूत कहाएँ !
हमारे पूर्वज ने बचाने में सीता की लाज
अपनी जान गंवाईं
फिर भी अपनी गंदी निगाह को
गिद्ध-दृष्टि कहते
आदमी को लाज नहीं आई
मुहावरों,उपमाओं में भी हमें
अशुभ और बुरा बताया
कभी नहीं हमसे प्रेम दिखाया
कब तक हम अपने सीने पर मूंग
दले
जाओ-जाओ आदमियों से तो
हम गिद्ध ही भले !
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