मूछें आगे हैं
घूंघट पीछे
प्रधानी चुनाव के
लिए
दाखिले का दिन है
मूंछें प्रचार कर
रहीं हैं
हाथ जोड़े खड़ा है
घूंघट
हर गाँव में यही
हाल है
परम्परावादी हैरान
“घर की इज्जत यूं चौपाल पर”
प्रगतिशील परेशान
‘ऐसी प्रगति अचानक!
मूंछें तो वही हैं सदियों पुरानी
मर्दों की आन-बान-शान
छीन रखा है
जिन्होंनें
औरत का चेहरा घूंघट
के नाम’
मूंछें बदलीं नहीं हैं
समय के हिसाब से
बदल लिया है बस
आकार-प्रकार
आचार-विचार
बोली-व्यवहार
‘काबिज’ रहने
का यह नया तरीका है
घूंघट इस बात से
अनजान है
मूंछें नाच रहीं
हैं
जीता है घूंघट
उत्सव का माहौल है
बंट रही हैं
मिठाईयां
ले-देकर घूंघट भी
खुश है
घूंघट घर में
चूल्हा जला रहा है
मूंछें चौपाल में
जश्न मना रहीं हैं
सामने खुली पड़ी हैं
बोतलें
देर रात डगमगातीं
घर लौटी हैं मूछें
घूंघट को सोता देख चिल्लाईं
हैं
थरथराता घूंघट अब
जमीन पर है
सीने पर सवार हैं
मूंछें
बाहर साइनबोर्डों
पर
घूँघट सवार है |
अब मूंछ की भूमिका पूंछ जैसी हो गयी है
ReplyDelete