कक्षा एक की नन्ही
बच्ची
चौंकती है नींद में
बार-बार
दुहराती है स्पेलिंग
कठिन अंग्रेजी
शब्दों के
टेस्ट हो रहे हैं
स्कूल में
कलपती है उसकी माँ
-‘इतनी छोटी बच्ची
पर इतना दबाव !
इतना पाठ्यक्रम तो
नहीं होता था
छठवीं कक्षा में भी
हमारे समय
रट्टू तोता बना रहे
हैं अंग्रेजी-माध्यम के स्कूल
ना खेलने का समय,ना
बचपन जीने का
सारा का सारा ज्ञान
धर देना चाहते हैं मानो
कच्चे घड़े से नाजुक
मस्तिष्क में |’
सोचती हूँ मैं -क्या
शामिल नहीं हैं वे भी
प्रतियोगी समय की इस
भीड़ में
जहाँ तेज गति पर
सबकी बोली है
जहाँ बच्चा घोड़ा तो
बन रहा है
इन्सान नहीं |
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