सिर्फ साँस
लेने और सूँघने की इंद्रिय
या चेहरे की सुंदरता
का
आधार
नहीं होती नाक
मनुष्य के गौरव और
सम्मान का
प्रतीक भी है यह
नाकदार होना
प्रतिष्ठा की बात है
भावाभिव्यक्ति में
भी माहिर होती है नाक
क्रियापदों से मिलकर
अनगिनत भाव
व्यक्त कर सकती है
अकेली नाक
चढ़े या फूले,तो
क्रोध प्रकट करे
सिकुड़े तो नफरत
इसे घिसे या रगड़े तो
मिन्नत करें
पकड़ ली जाए,तो हो
जाएँ अशक्त
रख ली जाए,तो इज्ज्त
बचे
काट ली जाए तो इज्जत
चली जाए
छेदे या दम करे तो
परेशान हो
चने चबाए या सुपाड़ी
तोड़े तो और भी परेशान
मक्खी ना बैठने
दे,तो सावधान कहलाए
गुस्सा बैठा ले तो
गुस्सैल
और दीया बालकर आए तो
जीत मनाए
कहाँ तक गिनवाएँ नाक
की महिमा
आप उसकी सीध में जा
सकते हैं
तो उस तक खा सकते
हैं
पर नाक का सबसे
सार्थक पर्याय है इज्जत |
स्त्री का नाक से
जन्मजात रिश्ता होता है
वह कभी पिता की नाक
होती है
तो कभी पति की
दोनों
कुलों,परिवार-समाज,देश सभी की
नाक उसी पर टिकी
होती है
उसकी हर गतिविधि नाक
के
दायरे के अंदर ही
होती है
नाक की चर्चा सुनकर
ही वह बड़ी होती है
और सारी उम्र उसकी
चिंता में गुजार देती है
जरूरी नहीं होता
सिर्फ यह
कि ठीक-ठाक हो उसका
नाक-नक्शा
अनगिनत नाकों की
जिम्मेदारी भी होती है उस पर
नाकों का भारी बोझ
लादे रहती है वह हरदम
अपनी कोमल पीठ पर
कभी हँस भी देती है
जोर से तो
सिकुड़ने लगती है कई
नाक
कई नाकें अपने कटने
के डर से चिल्ला उठती हैं|
पुरूष की नाक स्त्री
की नाक से ज्यादा लम्बी होती है
इसलिए उसके कटने का
खतरा उसे सताता रहता है
स्त्री उसकी बात ना
माने,उसके सांचे में ना ढले
खुद पर गर्व करे,आगे
बढ़े,उससे काबिल हो जाए
या अपनी पसंद से
प्रेम करे
तो कटी लगती है उसे
अपनी नाक
बदले में वह भी
काटने को
आतुर हो जाता है
स्त्री की नाक
तीनों लोक में सबसे
सुंदर स्त्री की नाक
त्रेतायुग में काटी
गई कि वह करना चाहती थी
स्वतंत्र प्रेम
और इक्कीसवीं सदी
में इसलिए काटी गई
कि उसने भी अपनी
मर्जी जीनी चाही
सोचती हूँ अनगिनत
नाकों की सुरक्षा करने वाली
स्त्री की जब काट दी
जाती है नाक
दुनिया भर की नाकों
को क्या शर्म नहीं आती ?
No comments:
Post a Comment