बलर्ब -...और मेघ बरसते रहे ..
रंजना जायसवाल का यह पहला किन्तु बेहद पठनीय उपन्यास है |यहाँ स्त्री के दुखों-तकलीफों के कई स्तर खुलते हैं ,लेकिन अच्छी बात यह है कि मुख्य पात्र 'नोरा' एक ऐसा मेच्योर चरित्र है जो इन दुखों की कथा से विगलित होकर नहीं रह जाता |वह उसके कारणों की खोज करते हुए जहाँ पुरूष-समाज पर व्यंजनात्मक टिप्पड़ी करता है,वहीं स्त्री की महत्ता को रेखांकित भी करता है |
निजी दुःख को विस्मृत कर यह चरित्र स्त्री और दुःख के करीबी रिश्ते की पहचान करते हुए प्रश्न करता है |आखिर स्त्री अपने हर रूप में पुरूष से दुःख ही क्यों पाती है ?पुरूष आखिर ऐसा क्यों हो जाता है स्त्री के लिए ?कैसी होगी स्त्री-विहीन दुनिया जब सृजन पर ही विराम लग जाएगा?स्त्री पुरूष के बीच वैमनस्य के बीज आखिर बोए किसने हैं ?क्यों पुरूष अहंकारी और शोषक हो गया है?क्यों उसे एक अकेली स्त्री महज एक देह लगने लगती है ?नदी की तरह है इस उपन्यास की नायिका जिसमें अनेक स्त्री धाराएँ सम्मलित हो गई हैं |
इनका एक होना ही नए समय की सृष्टि करना है |यही समय स्त्री अस्मिता की सही अर्थों में रक्षा कर पाएगा |
उपन्यास का ब्लर्ब -सामयिक प्रकाशन ,नयी दिल्ली
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