Wednesday 24 July 2013

ए मरद



तुमने मेरी बाहों पर
अपना नाम गुदवाया
और खून से लतपथ
मेरी बाहों को देखकर हँसते रहे
कि चिता तक जाएगा मेरे साथ
तुम्हारे नाम का मुहर
तुमने मेरी पूरी माँग में
भर दिया पारे वाला सिन्दूर
ताकि दबी रहे वह नस
जो संचालित करती है दिमाग को
तुमने मेरे पैरों में भारी बजने वाले पाजेब पहनाए
हाथों में खनकदार चूडियाँ
पैरों की अँगुलियों में बिछुए
इसलिए नहीं कि तुम्हें मुझसे प्यार था
इसलिए कि ये बेड़ी-और हथकड़ी की तरह
जकड़े रहें मुझे और मैं भाग ना सकूं
तुम्हारी कैद से
तुमने मेरे नाक कान छिदवाए
ताकि नियंत्रित रहें मेरी कामेंद्रियाँ
इस पर भी ना उपजा विश्वास
नाजुक अंग पर ताले तक लगाए
ए मरद
तुमने यह सब करके क्या पा लिया
एक जीवित मरा हुआ शरीर ही न
जिसकी एक भी धड़कन
एक भी सांस नहीं लेती
तुम्हारा नाम
ए मरद
तुम्हें गुलाम ही बनाना था
छू लेते कभी मेरे मन का कोई
कोमल कोना
मैं वैसे ही तुम्हारी गुलाम बन जाती
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