सैकड़ों आँखें उग आती है
स्त्री की देह में
स्त्री की देह में
चेहरे पर ही नहीं
हाथ..पाँव पीठ हर जगह
ये आँखें पढ़-समझ लेती हैं
हर स्पर्श की भाषा
भले ही वे नजरों द्वारा
लिखी जा रही हों उसकी पीठ पर ही |
सबसे तेज हैं उसकी मन की आँखें
शिकारी कितना भी चालाक और बहुरूपिया हो
कितने भी हों जबरदस्त
उसके जाल
वे आँखें पहुँच ही जातीं हैं
उसके मन तक
भले ही कभी लापरवाह होकर
खुद ही जाल में फंसने का
अनुभव लें
या प्रेम के नशे में हो जाए बेसुध
किसी जाल में नहीं शक्ति कि
फंसा सके उसे उसकी मर्जी के खिलाफ
पता नहीं किसने दिया उसे
अबला का नाम
जब कि वह सबल बनाती आई है
वही दुनिया को
उसे देखकर दुर्बल होते हैं
बस कमजोर मन
सह्स्त्राक्षि है स्त्री
इंद्र की तरह किसी शाप बस नहीं
पाप वश नहीं
इसलिए कि वही हाँ वही शक्ति है
सैकड़ों आँखों वाली
कोई माने ..ना माने
जाने तो ....|
हाथ..पाँव पीठ हर जगह
ये आँखें पढ़-समझ लेती हैं
हर स्पर्श की भाषा
भले ही वे नजरों द्वारा
लिखी जा रही हों उसकी पीठ पर ही |
सबसे तेज हैं उसकी मन की आँखें
शिकारी कितना भी चालाक और बहुरूपिया हो
कितने भी हों जबरदस्त
उसके जाल
वे आँखें पहुँच ही जातीं हैं
उसके मन तक
भले ही कभी लापरवाह होकर
खुद ही जाल में फंसने का
अनुभव लें
या प्रेम के नशे में हो जाए बेसुध
किसी जाल में नहीं शक्ति कि
फंसा सके उसे उसकी मर्जी के खिलाफ
पता नहीं किसने दिया उसे
अबला का नाम
जब कि वह सबल बनाती आई है
वही दुनिया को
उसे देखकर दुर्बल होते हैं
बस कमजोर मन
सह्स्त्राक्षि है स्त्री
इंद्र की तरह किसी शाप बस नहीं
पाप वश नहीं
इसलिए कि वही हाँ वही शक्ति है
सैकड़ों आँखों वाली
कोई माने ..ना माने
जाने तो ....|
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