Saturday 5 October 2013

वन्य-लताओं सी होती हैं लड़कियाँ


माँ कहती थी
चंचलता अभिशाप है लड़कियों के लिए
लोकोक्ति में भी
लड़की के हंसने को फंसने से जोड़ा जाता है
फिर भी कहाँ थिर रह पाती हैं लडकियाँ
नाचती रहती है उनके पैरों के नीचे की जमीन
वे वन्य लताओं की तरह
कोई अनुशासन नहीं मानतीं
कुछ लड़कियाँ जरूर अपवाद होती हैं
कुछ को संभ्रांत सोच बचपन में ही
तराश देती है
वे ऑटोफिशियल लड़कियाँ बन जाती हैं
जबकि ज्यादातर लड़कियाँ होती हैं
प्रकृति जैसी
हर जगह को खुशबू से महका देती हैं
वातावरण को
संगीतमय बना देती है
यूँ कहें कि जंगल में भी महामंगल
रचा देती हैं
उनके जागने से सूरज में ताप आता है
सोने से बढता है अन्धकार
यौवन के आगमन से
रूप-रस-गंध से लबालब भर जाती हैं लड़कियाँ
काला,स्याम,गेहूंआ या गोरा कैसा भी
उनका रंग
छोटा-मंझोला,लंबा कैसा भी हो कद
जैसी भी हो देह-मुँह की आकृति
आकर्षण को भी आकर्षित करने लगती हैं लड़कियाँ
घर..बाजार शादी-त्यौहार
हर अवसर पर अलग ही दिपदिपाती हैं लड़कियाँ
अपने सादे चेहरे और कपड़ों से भी
मात दे देती हैं
रंगी-पुती जेवर-कपड़ों से सजी औरतों को
उनके आते ही बनने लगता है बिगड़ा काम
दुकानदारों के चेहरे खिल उठते हैं
चीजों के गिरने लगते हैं दाम
कोई लाख कहे
सच यही है कि बड़े-बूढ़े हो
या बच्चे जवान
सबको अच्छी लगती हैं लडकियाँ
वे ना हों चली जाए रौनक दुनिया की
फिर क्यों कहती है माँ
लड़कियों के जन्म से धंसती है धरती
मैंने तो देखा है
धरती को उनके साथ खुशी से उछलते हुए |

No comments:

Post a Comment