Tuesday, 8 October 2013

लता



किसी वृक्ष की तरह
तनी खड़ी थी 
मालती की लता 
हालांकि उसका तना 
उतना मोटा नहीं था 
ना डालियाँ उतनी मजबूत 
ऊँचाई भी कम थी 
वृक्ष के मुकाबले 
पर किसी वृक्ष से ज्यादा 
फूलों से लदी थी लता 
लता का अपने आप खड़ा होना आश्चर्य था 
क रीब जाकर देखा 
एक तार के सहारे 
खड़ी थी लता 
दूर से नहीं दीखता था तार 
दिखती थी सिर्फ लता 
वृक्ष और लता में कुदरती फर्क है 
यह फर्क ही सौंदर्य है 
कुछ लोग कहते हैं 
कमजोर होती है लता 
अपने -आप दो इंच भी 
नहीं जा सकती ऊपर 
सहारे से ऊपर चढकर इठलाती है 
लता इठलाती नहीं है भाई 
वह तो आभार जताती है 
जरा से सहारे का बदला 
ताउम्र चुकाती है |

1 comment:

  1. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति |

    मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

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