Saturday 12 December 2015

पेड़ बनकर

अनगिनत बार 
तोड़ी गईं जलाई गईं 
मेरी टहनियाँ डालियाँ पत्तियाँ 
काटा गया तना 
जड़ें बची रहीं 
धरती की कोख में थीं 
नहीं चल सका
उनपर उनका जोर 
मौसम बदला है 
निकल रही हूँ मैं फिर 
हरा -भरा पेड़ बनकर |

No comments:

Post a Comment