Wednesday, 16 December 2015

गोरा रंग

मैं गोरी होना चाहती हूँ माँ 
क्या पोत लूँ पूरी देह पर सफेद रंग 
कि खरीद लूँ दुनिया भर की गोरेपन की क्रीम 
कि सर्जरी करवाकर निकाल फेकूं
यह काली चमड़ी 
हिकारत से देखते हैं मुझे
घर-बाहर
सभा समाज
अपने –पराए सब
सबको पसंद है
सफेद हंस
सफेद कबूतर
सफेद फूल
सफेद रंग
धर्मग्रन्थ भी तो मानते हैं
सफेद रंग को
स्वच्छ ,पवित्र
अशोक और सुखप्रद
काला रंग भयावह होता है
जैसे अन्धकार
जैसे नरक
मैं काली नहीं रहना चाहती माँ
मैने देखा है कालों को
लोग बुरा समझते हैं
अशुभ समझते हैं
तुम कहती हो कृष्ण भी काले थे
राधा तो काली नहीं थी माँ
पार्वती थीं सांवली
नोंच फेंकी काली चमड़ी
और गौरी बन गईं
मानती हूँ ‘काली’ शक्ति हैं
पर कितने लोग चाहते हैं काली सी बेटी
सब गौरी ही चाहते हैं
तुम ही बताओ
क्यों रोती हो
जब लौट आती है हर बार
लड़के वालों के घर से
मेरी कुंडली?
मैं गोरी होना चाहती हूँ माँ
बताओ ना क्या करूँ?

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