Monday, 7 December 2015

आज सुबह

कुहासे की रज़ाई मे
दुबके हुए थे
पेड़-पौधे 
जबकि हो चुकी थी
सुबह कब की
अचानक नदी के ठंडे पानी से
नहाकर आई हवा ने
खींच कर उनकी रज़ाई
भीगे घने केशों को
झटक दिया उनपर
बिखर गईं
ठंडी ऑस की बूंदें
काँपकर जाग उठे
पेड़-पौधे
झल्लाकर कहने लगे -
निगोड़ी को ठंड मे भी
चैन नहीं |

1 comment:

  1. कुहासे में डूबी सुन्दर रचना।

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