पूरवा हवा झकझोर
रही है
सेमल को
लंबी पेंगे ले रहे हैं पत्ते
निश्चिंत भरोसे
टहनियों के
टहनियाँ भी झूल
रही हैं
डालियों के भरोसे
डालियाँ भी डोल लेती हैं
जरा-जरा भरोसे तने के
तना स्थिर है
जानता है
दबाना पड़ता है घर
के मुखिया को
अपनी इच्छाओं का
उद्दाम वेग
पूरे कुनबे की सुरक्षा के लिए
वह टटोलता है अपने
हजारों
नन्हें जड़ पैरों से माँ धरती को
और छोड़ देता है
अपने आप को
उसके भरोसे |
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