Sunday 17 January 2016

एक बार फिर

दस्तक देने के लिए उठे मेरे हाथ ,
और दरवाजा खुलने की आवाज के बीच
जो वक्त गुजरता है ,हाँ उस वक्त भी ,अक्सर
यही सोचती रहती हूँ मैं ,कि
आज ये भी  वो भी और जाने क्या-क्या ..
सब कह डालूंगी मैं तुमसे
काफी कुछ कह भी जाती हूँ
जो कुछ याद आता है
कुछ भी तो नहीं छोड़ती उसमें से
जल्दी से जल्दी
भरने की कोशिश करती हूँ ,
किसी परीक्षार्थी की तरह
अतिरिक्त उत्तर पुस्तिकाएँ |
मगर ....!
हमेशा की तरह
फिर आ जाता है
चलने का वक्त
-और ,
अनुत्तरित ही रह जाते हैं
तुम्हारे कुछ प्रश्न
अनदिए ही रह जाते हैं
मेरे कुछ उत्तर |
अच्छा!चलती हूँ !””’’
और ...
’’फिर कब आओगे ?’’के बीच ,
छूट जाता है ,कितना कुछ !
आने वाले कल के लिए

हर बार की तरह ,एक बार फिर|

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना, "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 19 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही भले होते है ..उत्तर सुनकर ठेस पहुँचती है मन को ..
    बहुत सुन्दर रचना

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